Wednesday, July 04, 2018

क़ोरे काग़ज़ का क़ोरापन part-1





क़ोरे  काग़ज़  के  क़ोरेपन  में
दिखता वो अक़्स सादेपन-सा
टूटती  हुई  बोझिल  साँसों  में
घुला  हुआ  है  ख़ालीपन - सा
मुड़ती   गईं   राहें   भी   यूँ    तो
ख़ैर उनसे भी अब शिक़वा कैसा
तक़दीर थी यह तो अपनी-अपनी
लिखा  था जिसमें  फ़साना ऐसा

बदली-बदली है आज वो नज़रें
पढ़ा  था  जिनमें  याराना  वैसा
रूठी   हुई   है   आज  हर   शै
आख़िर गुनाह किया हमने कैसा..??

To be continued....


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