Saturday, August 25, 2018

क़ीमत कहाँ मिली part -2

To be continued...

ज़िन्दगी को जीने की यह वजह भी क्या मिली
लगा यूँ मानो यह वजह भी बेवजह मिली
मुसीबतों ने क्या कहें..रफ्तार* कुछ ऐसी पकड़ी
जिस राह से गुज़र हुआ..यह वहाँ सदा मिली

ज़ख़्म बना नासूर* जब भी उसे दवा मिली
यक़ीं करने की यह भी क्या खूब सज़ा मिली
मंज़िलों की तलाश में यूँ छूट गए क़ाफ़िले*
और मंज़िलों की राह भी..बंद हर दफ़ा मिली

ज़िन्दगी को जीने की यह वजह भी क्या मिली
लगा यूँ मानो यह वजह भी बेवजह मिली...
खून के हर कतरे से बस यही इल्तिजा* मिली
क़ीमती हूँ..पर मेरी, क़ीमत मुझे कहाँ मिली ??

मुसीबतों ने क्या कहें..रफ्तार कुछ ऐसी पकड़ी
जिस राह से गुज़र हुआ यह वहाँ सदा मिली
क़ामयाबी ने शर्त रखी.. मिलूँगी मैं तब ही
आरज़ुओ* के दामन में सच्चाई ग़र वहाँ मिली..!!!

रफ्तार   : तेज़ी
नासूर  : गहरा घाव
क़ाफिले : कारवां
इल्तिजा : प्रार्थना
आरज़ुओं : ख़्वाहिश, इच्छा



2 comments:

Happy reading.....