न कोई आँगन है... न कोई ठिकाना...
न किसी से राबता है..न कहीं आना-जाना
मुफ़्लिसी में जीने को इस क़दर मजबूर हो गए
चार दिन ज़िन्दगी के पैसे कमाने में ही खो गए
कहतें हैं जो ज़िन्दगी खूबसूरत है...
यहाँ आकर देखिए इसकी यह भी एक सूरत है..
अमीर जहाँ और अमीर बनता गया
गरीब का हर लम्हा उम्र बनकर ढलता गया
उन महलों की हर शाम थी जश्नों वाली
यहाँ तो नसीब में ही नहीं थी 'दीवाली'
कहतें हैं जो ज़िन्दगी खूबसूरत है...
यहाँ आकर देखिए इसकी यह भी एक सूरत है...
न किसी से राबता है..न कहीं आना-जाना
मुफ़्लिसी में जीने को इस क़दर मजबूर हो गए
चार दिन ज़िन्दगी के पैसे कमाने में ही खो गए
कहतें हैं जो ज़िन्दगी खूबसूरत है...
यहाँ आकर देखिए इसकी यह भी एक सूरत है..
अमीर जहाँ और अमीर बनता गया
गरीब का हर लम्हा उम्र बनकर ढलता गया
उन महलों की हर शाम थी जश्नों वाली
यहाँ तो नसीब में ही नहीं थी 'दीवाली'
कहतें हैं जो ज़िन्दगी खूबसूरत है...
यहाँ आकर देखिए इसकी यह भी एक सूरत है...
Nice one :)
ReplyDeleteThanx :-)
DeleteGood one
ReplyDeleteThanx..:-)
DeleteNice Shaaheen
ReplyDeleteThnx :-)
Deleteमजा भी इसी जिंदगी में है, जहाँ सिर्फ हम है और हमारे बराबर कोई नही...
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