धुआँ धुआँ है सारा समां..
हर इन्सां सिम्ते ख़ौफ है...
सपने यहाँ हर रोज़ करवटें लेते..
रात की गहराई में भी बेख़ौफ हैं..
नज़्म रूठ गई है हमसे..और क़लम ख़ामोश है
तमन्नाओं और आरज़ुओं का
चश्मा बहता यहाँ रोज़ है..
समंदर की दास्तां बयां करती
लहरें ये..... सरफ़रोश हैं...
नज़्म रूठ गई है हमसे..और क़लम ख़ामोश है
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Happy reading.....