Friday, March 02, 2018

यह शाम...-1

हमेशा की तरह आज यह शाम फिर ढल रही है
हर पल हर दिन ज़िन्दगी हाथ से निकल रही है

दौलत और शोहरत कमाने के इस जुनून के बीच
कई रिश्तों की डोर बुनने से पहले ही उधड़ रही है

                 कहने को तो ज़िन्दगी सदा चार दिन की ही रही है
                 पर फिर क्यों आज यह बस एक बोझ लग रही है

                 हमेशा  की तरह आज यह  शाम  फिर ढल रही है
                 हर पल  हर दिन  ज़िन्दगी हाथ  से  निकल रही है


4 comments:

Happy reading.....