To be continued...
दुनिया में क़दम रखने पर मैंने
अपनी ही मुट्ठियों को आहिस्ता खुलते देखा है
होठों पर मुस्कान... आँखों में आँसू
पहली बार उन्हें इतना ख़ुश होते देखा है
सारे दुख... सारी थकान भुलाकर
उन्हें अपने साथ बचपना करते देखा है
ख़ुशी का मेरी भी उस दिन से ठिकाना नहीं
फिरश्तों को इतने क़रीब से जब से देखा है
हाँ...मैंने ख़ुदा को देखा है...
हर आँधी... हर तूफान में...
खुद को किसी आँचल में सिमटते देखा है
हर मुश्किल..हर घबराहट में...
एक दीवार को खड़ा ढाल बनते देखा है
मेरी वजह से उन्हें कई बार..
रातों को जगते देखा है
एक सिसकी से मेरी
उन्हें कई बार बिखरते देखा है
हाँ...मैंने ख़ुदा को देखा है...
आज भी जहाँ में सुक़ूं तलाशते
उसे सिर्फ माँ की गोद में ही मिलते देखा है
ज़िन्दगी की पैचीदा गलियों में बगड़े हुए को
पिता की एक फटकार से सुधरते देखा है
कल हमारा सहारा थे जो....हाथ
उन हाथों को आज ख़ुद सहारा तलाशते देखा है
अब हमारी बारी है अपना फर्ज़ निभाने की..
क्योंकि हमने इसी तरह वक़्त बदलते देखा है..
हाँ...मैंने ख़ुदा को देखा है
दुनिया में क़दम रखने पर मैंने
अपनी ही मुट्ठियों को आहिस्ता खुलते देखा है
होठों पर मुस्कान... आँखों में आँसू
पहली बार उन्हें इतना ख़ुश होते देखा है
सारे दुख... सारी थकान भुलाकर
उन्हें अपने साथ बचपना करते देखा है
ख़ुशी का मेरी भी उस दिन से ठिकाना नहीं
फिरश्तों को इतने क़रीब से जब से देखा है
हाँ...मैंने ख़ुदा को देखा है...
हर आँधी... हर तूफान में...
खुद को किसी आँचल में सिमटते देखा है
हर मुश्किल..हर घबराहट में...
एक दीवार को खड़ा ढाल बनते देखा है
मेरी वजह से उन्हें कई बार..
रातों को जगते देखा है
एक सिसकी से मेरी
उन्हें कई बार बिखरते देखा है
हाँ...मैंने ख़ुदा को देखा है...
आज भी जहाँ में सुक़ूं तलाशते
उसे सिर्फ माँ की गोद में ही मिलते देखा है
ज़िन्दगी की पैचीदा गलियों में बगड़े हुए को
पिता की एक फटकार से सुधरते देखा है
कल हमारा सहारा थे जो....हाथ
उन हाथों को आज ख़ुद सहारा तलाशते देखा है
अब हमारी बारी है अपना फर्ज़ निभाने की..
क्योंकि हमने इसी तरह वक़्त बदलते देखा है..
हाँ...मैंने ख़ुदा को देखा है

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