सूरज की रोशनी से... चाँद की चाँदनी से...
फूलों की महक से.. बारिश की झम-झम से..
कोई धुन...कोई राग...कोई गीत आज बनाया जाए
बोझिल हुई साँसों को... उन बेमानी बातें को...
चकनाचूर हुए उन सपनों को...पीछे छूटे उन अपनों को
क्यों न पूरे दिल से फिर आज अपनाया जाए
चलिए..आज इस दुनिया को कुछ रहने लायक बनाया जाए
उन भुली-बिसरी तंग गलियों में.. चौराहे की उन थड़ियों में
उन खेलों के मैदानों में...वो दूर तक फैले बाग़ानों में...
अपने कल की ख़ुश तस्वीरों को यूँ यहीं कहीं तलाशा जाए
वक़्त की जंजीरों से.... हाथों की इन लक़ीरों से
माथे पर पड़ी सिलवटों से..उन बेमिले जोड़ों से
होकर आज़ाद खुलकर फिर मुस्काया जाए
चलिए...आज इस दुनिया को कुछ रहने लायक बनाया जाए
पैचीदा गलियों के झमेलों को... उन राहगीर अलबेलों को
थककर बैठे मुसाफिर को..मज़हब भूल चुके उस 'क़ाफिर' को
खुद-से-खुद तक का ये लम्बा सफर क्यों न आज कराया जाए
मज़लूमों को.. उन लाचारों को.. उन उदास आँखों को
उस में पलते उन सपनों को...उन अनमने-से जतनों को
कम- से- कम यूँ क़ुसूरवार तो न ठहराया जाए...
चलिए..आज इस दुनिया को कुछ रहने लायक बनाया जाए
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ReplyDeleteapke dwara batai gain baten bhot hi sukun deti hain. bahut achhe sir... aise hi post likhte rahen. This is blogging, Wordpress, make Money Online
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