Wednesday, March 14, 2018

बाक़ी है...-2


आ  पहुँचे   हैं  आज  हम  मीलों  दूर
मीलों का करना सफर अभी बाक़ी है

आसान  लगने  वाली  सीधी  राहें नहीं ये
इनमें कई घुमावदार मोड़ अभी बाक़ी हैं

To be continued...

जज़्बातों को पेश होने में दिक्कतें अक्सर आती हैं
अल्फ़ज़ों  को  दिखाना  अपना  वो  हुनर बाक़ी  है

चैन-ओ-सुक़ून की शामें फिर भी नसीब हो जाती हैं
पर  सुक़ून- ओ -चैन  की  अभी वो  सहर  बाक़ी  है


सभी  राहें  दिखे  ख़त्म  होती  भले  जहाँ  पर
वहीं पास से जाती एक पथरीली डगर बाक़ी है




पुकार  मेरी चाहे खो गई हो इन  वादियों में कहीं
यक़ीं है पर उन पुकारों का असर अभी बाक़ी है

कहने   वालों  ने  भी  यह  क्या  खूब  कहा   है...
ज़िन्दादिल हैं बस वो जिसमें जीने का हुनर बाक़ी है

कमी  तो  नहीं  ऐसों   की  भी  इस   जहाँ   में
रखते हैं हिसाब कितनी ली हैं साँसें... कितनी बाक़ी हैं



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