Sunday, June 03, 2018

कोई और था...




रुकना  था  जिस  जगह..... वो  साहिल  कोई  और  था..
सँभलता था जो बस ठोकरों से..वो मुसाफिर कोई और था

इक सैलाब ने तबाह किया कुछ इस तरह चमन को
लगता है.... महकता  हुआ वो चमन  कोई और था

उस  दौराहे  के बाद से  लगने लगा  कुछ अजीब
मंज़िल  मिलनी  थी जहाँ..वो मोड़  कोई और था

मसरूफ़ियत   आज   उनकी   यह  बयां  कर  गई
बाँटते थे जिससे तक़लीफें..वो हमदर्द कोई और था




काले-सफ़ेद बस दो ही रंगों से रंग पाए ज़िन्दगी के पन्ने
तमाम  रंगों  का  इंतज़ार  तो  ख़ैर  हमें भी उम्र  भर था

इक दर्द ने दी है हिम्मत...ज़िन्दगी से इस जंग की
अगले  दिन  देखा..... तो  वो  दर्द  ही क़ाफूर  था

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Happy reading.....