Sunday, October 14, 2018

...तो बात कुछ और ही होती part-1



घनघोर घटाएँ छाईं... भयंकर गरजन भी हुआ
गर मेघ ग़र झूम कर बरसते... तो बात कुछ और ही होती

ज़िन्दगी के हर इम्तेहान में नाक़ामी ही हाथ आई
कुछ इम्तेहां में सिफ़र न आए होते..तो बात कुछ और ही होती

जो शामिल थे कल तक हमारी हर जीत के जश्न में
आज इस ग़म में भी शिरक़तकरते..तो बात कुछ और ही होती

वो मिले सब से महफ़िल में इक नकली हँसी का मुख़ौटा लिए
यह मुस्कुराहट ग़र असली होती....तो बात कुछ और ही होती

To be continued....

सिफ़र : शून्य
शिरक़त : शामिल




2 comments:

  1. वाह वाह वाह क्या खुब लिखते हो आप मैडमजी। पार्ट 2 का बेसब्री से इन्तजार रहेगा।

    ReplyDelete
    Replies
    1. Shukriya..keep reading..it will be published soon :-)

      Delete

Happy reading.....