घनघोर घटाएँ छाईं... भयंकर गरजन भी हुआ
मगर मेघ ग़र झूम कर बरसते... तो बात कुछ और ही होती
To be continued...
ज़िन्दगी की ठोकरें खाने के बाद उसकी सीख समझ में आई
बिना ठोकर खाए ही समझ जाते..तो बात कुछ और ही होती
न जाने क्या बात थी कि इक ख़ामोशी-सी थी फिज़ाओं में
शायद उस दिन पूछ ही लेते..तो बात कुछ और ही होती
बुझी-बुझी थी आज सारी शमाएँ दिन ढल जाने के बाद भी
सामने परवानों की मुश्किल न होती तो बात कुछ और ही होती
कल तक दोस्ती की महक में महकता था सारा जहाँ
आज शाम फिर दोस्तों की वही मस्ती होती तो बात कुछ और ही होती
कहते हैं...इतिहास अपने आप को फिर दोहराता ज़रूर है
इतिहास ने ये कहानी भी दोहराई होती तो बात कुछ और ही होती
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Happy reading.....