Sunday, November 25, 2018

एक रिश्ता



आ कर जाना ही हो ज़िन्दगी से वापस
तो तुम्हारा ऐसा आना मुझे क़ुबूल नहीं
             ख़ुद तक़लीफ देकर मिन्नतें* करो ख़ुश रहने की
             तो   ये.....  ख़ैर  ख़्वाहों*  वाला   सुलूक़  नहीं

यह इत्मेनानियत* की बातें हैं जनाब...
इनमें   तफ़्सील*  बेहद   ज़रूरी   है
              हर  बात   इशारों में  ही  हो
              यहाँ  ऐसा  कोई  उसूल  नहीं

क़ुसूर तो था बेशक़.. वो भी बेहिसाब
और   इसे   दिल   जानता   भी   है
              पर ज़ुबान* इस पर कैसे हामी भरे
              इतने  तो इस  दिल के रसूख़* नहीं

शिक़वा  नहीं...... पर   एक  क़सक  बाक़ी  है
उन यादों की पोटली में लिपटी गहरी उदासी है
               न  चाह  कर  भी सहेजना  होगा  इसे  ताउम्र
               मीठा-सा रिश्ता था वो..बस एक फ़ितूर* नहीं


मिन्नतें: प्रार्थना , request
ख़ैर  ख़्वाह: भला चाहने वाला , well- wisher
इत्मेनानियत: धैर्य ,तसल्ली , patience
तफ़्सील: विवरण , detailing
ज़ुबान: जीभ , tongue
रसूख़: जान-पहचान, पहुँच , jack
फ़ितूर: दीवानापन , a kind of madness

2 comments:

Happy reading.....