चुनावों के दौर में
आचार संहिता को तो सही मानते हैं
पर ये सियासी लोग हैं
नपा-तुला बोलना कहाँ जानते हैं
बोलने से याद आया
'आप' आए तो थे
कई नौजवानों को नौकरियाँ छुड़वाकर
साथ लाए तो थे
पर क्या हुआ उस 'विश्वास' का ?
जनता ने बाँधी थी उस आस का
'भ्रष्टाचार हटाने' का नारा था
पर पार्टी को तो भ्रष्टों ने ही मारा था
बात करते हैं अब अधिकार की
देश के चौकीदार की
कई भोर हुईं.....कई रातें हुईं
मन की कई बातें हुईं
रातों रात के उस फैसले से
लोग सभी कतारबद्ध थे
नाम कालेधन वालों के लिए जाते हैं
पर आँकड़े देखने हमें भी आते हैं
व्यक्तित्व बहुत सुलझा है
और वक्ता बहुत अच्छा है
पर बातों से देश कहाँ चलता है !!
समय का चक्र हर 5 साल में बदलता है
To be continued....
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very nice
ReplyDeletevery nice thanks for shairng
ReplyDeleteThnx alot..keep reading :-)
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