To be continued...
बड़ी शिद्दतों से यादें ज़हन से लिपटती है
पर अफसोस तुम पर ज़ाहिर नहीं कर सकती
डर है इस रिश्ते की पाक़ीज़ग़ी से दग़ा न हो जाए
सफर ये कहीं अधूरा न रह जाए
मेरी ज़िन्दगी में तुम्हारी मौजूदगी की एहमियत को
कई दफा लफ़्ज़ों में पिरोने की नाकामयाब कोशिश की तो ज़रूर
पर सिफ़र होती इन कोशिशों को नई आस देने की ख़ातिर
आज सोचती हूँ... कि लिख लूँ
तुम इसे पढ़ रहे हो तो सुनो यह बस तुम्हारे लिए है
मुहब्बतों का सैलाब आज भी खड़े हम किनारे लिए हैं
एहसासों को तो नज़र लगने का ख़तरा था
इसलिए आज सोचती हूँ...कि लिख लूँ
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https://daureparvaaz.blogspot.com/2019/03/part-1.html?m=1#links
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किनारे खड़े हो, मतलब बेशकीमती मोती तुम्हारे पास जरूर मिलेंगे...
ReplyDeleteZarur
DeleteKeep reading:-)
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ReplyDeletenice post dear
ReplyDeleteThnx.. Keep reading :-)
DeleteSarkari Result Apply
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