Monday, March 11, 2019

सोचती हूँ लिख लूँ...part 1

आज रूह को ग़िज़ा की ज़रूरत थी
तो सोचा कि लिख लूँ...
पल ये चले जाएँ न कहीं
इन्हें अपने पास समेट कर रख लूँ

बेहद खूबसूरत और ख़ुशनुमा हो गया था समां
बिल्कुल बेमौसम की बारिश जैसा
सौंधी-सौधी वो मिट्टी की ख़ुश्बू
जाने ये किसने फिज़ाओं में इत्र घोला ऐसा

सभी बातें यूँ तो लफ़्ज़-ब-लफ़्ज़ याद है मुझे
फिर भी सोचती हूँ कि लिख लूँ...
शायद उठाकर कल कोई पढ़ ही ले इसे
शोहरत पाने का ये ग़ुमां ज़रा मैं भी तो चख़ लूँ

बेहद हसीं थे वो लम्हे बेशक़
जो संग हमने बिताए थे...
ख़ौफ था भला किसे..किसी बात का
आधे रास्ते तक साथ तुम जो आए थे


दस्तूर ही होगा यह शायद इश्क का
जो हमें भी निभाना पड़ा
सच्चा इश्क तो अधूरा ही रहता आया है बरसों से
इतिहास को आज फिर कुछ यूँ दोहराना पड़ा

To be continued......

For part 2 click here
https://daureparvaaz.blogspot.com/2019/03/part-2.html

2 comments:

  1. Sahi khel lete ho aap madam har baar.....very deep and aptly expressed words❤❤❤

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Happy reading.....