Tuesday, June 19, 2018

ज़िन्दगी की सीख़




हर  शब  ख़्वाबों  में  मेरे...
मुझसे ज़िन्दगी मिलने आती है
मेरी  मसरूफ़ियत  पर  वो
कुछ  नाराज़गी  जताती है


         ''ज़रूरतें पूरी होती हैं..लालसा नहीं'' 
-कहकर  वो  मुझे  समझाती  है
99-100  के  इस  झमेलों  को
वो  जानना  ही  नहीं  चाहती है

कभी  हँसाती  है....कभी रुलाती है
पर जो भी हो..मेरा साथ निभाती है
उसकी  इस अदा की  क़ायल  हूँ मैं
यह सुनकर..वो थोड़ा सा इतराती है

कभी कभी वो मुझे 
बच्चों-सा समझाती है
बड़े  भोलेपन  से मेरे 
सारे नाज़ उठाती  है

पर एक बार जब वो
सिखाने पर आ जाती है
तो बिन छड़ी ही बड़े-बड़े
सबक याद कराती है

मुश्किलों  में  भी  वो  
मन  ही मन  मुस्काती  है
गिरकर फिर उठने का 
सलीक़ा मुझे सिखाती है

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Happy reading.....