अक्सर होश सँभालने के बाद..हम ज़िम्मेदारियों को ख़ुद पर इस क़दर हावी कर लेते हैं..कि ज़िन्दगी को ख़ुश होकर जीना ही भूल जाते हैं...पढ़ाई...नौकरी...परिवार की ज़िम्मेदारियाँ...आजीविका...दौलत...शोहरत... हम सभी की ज़िन्दगी बस इन्हीं के इर्द -गिर्द घूमती रहती है...
उड़ान भरने की ख़ातिर खुला आसमान चाहिये
लम्बे समय से खुली रही है ये आँखें
अब इन्हें भी थोड़ा आराम चाहिये
महके सदा फूलों से वो बाग़ चाहिये
पूनम-सी चाँदनी हर रात चाहिये
लम्बे अरसे से दौड़ रही हैं ये साँसें
अब इन्हें थोड़ा आराम चाहिये
99 के 100 बनने पर वो क़रार चाहिये
फिर 100 के भी लाख बनने का ऐतबार चाहिये
लम्बे समय से तभी विचलित है मन
this one is fabolous poem highlighting the growing ambitions of the world.
ReplyDeleteThanx..alot...keep reading :-)
DeleteWhen we are going to get its second part.
ReplyDeleteSoon :-)
DeleteAwesome shaheen .. Will use this poem in video😃
ReplyDeleteThanx dear...sure it will be my pleasure miss youtuber..:-)
DeleteAmazing...!!!!
ReplyDeleteThanx Alot..dixit..keep reading :-)
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