Sunday, July 29, 2018

थोड़ा आराम चाहिये..part-1

अक्सर होश सँभालने के बाद..हम ज़िम्मेदारियों को ख़ुद पर इस क़दर हावी कर लेते हैं..कि ज़िन्दगी को ख़ुश होकर जीना ही भूल जाते हैं...पढ़ाई...नौकरी...परिवार की ज़िम्मेदारियाँ...आजीविका...दौलत...शोहरत... हम सभी की ज़िन्दगी बस इन्हीं के इर्द -गिर्द घूमती रहती है...

तपती  चिलचिलाती  धूप में  कुछ छाँव  चाहिये
उड़ान भरने की ख़ातिर खुला आसमान चाहिये
लम्बे  समय से खुली रही है ये आँखें
अब इन्हें  भी  थोड़ा  आराम चाहिये

महके सदा फूलों से वो बाग़ चाहिये
पूनम-सी  चाँदनी  हर  रात  चाहिये
लम्बे अरसे से दौड़ रही हैं ये साँसें
अब   इन्हें  थोड़ा  आराम  चाहिये

99   के   100  बनने   पर  वो  क़रार   चाहिये
फिर 100 के भी लाख बनने का ऐतबार चाहिये
लम्बे  समय  से  तभी  विचलित  है  मन
अब   इसे   भी  थोड़ा   आराम   चाहिये








8 comments:

  1. this one is fabolous poem highlighting the growing ambitions of the world.

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  2. When we are going to get its second part.

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  3. Awesome shaheen .. Will use this poem in video😃

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    1. Thanx dear...sure it will be my pleasure miss youtuber..:-)

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  4. Amazing...!!!!

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Happy reading.....