Sunday, November 17, 2019

दो राय



हम जैसे थे..
तो वो भी बस अपने दिल की ही मानते थे

आज कहते हैं..
बेटा..!! हम उस वक्त भी तुमसे ज़्यादा जानते थे

ख़ुद से तो
तंगहाल में भी तंगदिली नहीं दिखाई जाती

पर इल्ज़ाम रखते हैं कि...
आजकल के बच्चे शेख़ी ज़्यादा मारते हैं

कुछ ख़ामियाँ ज़रूर हैं...
मानती हूँ मैं पर...

मुनासिब नहीं...
सारे इल्ज़ामात हम पर

जो ये बार-बार ज़माने की हवा का हवाला देते हो
उड़ानों को क्यों बंदिशों का तक़ाज़ा देते हो

सबब हमारा कभी
आपकी पेशानी पर सिलवटें लाना नहीं होता

पर कुछ ख़्वाहिशें हैं..कुछ सपने हैं..
जिनके बिना गुज़ारा नहीं होता

ख़िलाफ़त तो नहीं पर
कुछ ना-इत्तेफाक़ियाँ ज़रूर एक मत हैं

हम अपनी ज़िन्दगी पर कुछ इख़्तियार चाहें
तो हम कहाँ ग़लत हैं..!!!



तूफानों के थपेड़ों में
जब हमारा सफ़ीना फँस जाया करता

कोई राह नज़र न आती
और दिल डूब जाया करता

कोसते रह गए कि-
''ग़लती की है तो भुगतो !!''

उदासी और गहरा जाती कि
कम-से-कम आपने तो बड़प्पन दिखाया होता..




4 comments:

  1. वाहहहहहह........
    क्या बात है, बहुत हिम्मत चाहिए कुछ ऐसा लिख ने के लिए, मैं दाद देता हूँ। मैं सहमत हूँ आपके हरेक शब्द से, कई बार हमारे अपने ही हमें नहीं समझ पाते नौकरी हो, पढ़ाई हो, शादी हो यां फिर ऐसे और कोई विषय कई बार समस्या आती है।

    बहुत खूब लिखा आपने...बधाई !!!!

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  2. Hii,Those are really good,I am able to correlate with it.Just waiting for the second part....

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  3. Bht bht Shukriya...second part will come soon...pls keep reading :-)

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Happy reading.....